धोखाधड़ी करने वाला ‘420’ नहीं 316 कहलाएगा, हत्या की धारा भी नहीं रहेगी 302
मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से बलात्कार के लिए मौत की सजा का प्रावधान
भोपाल में पीआईबी ने आयोजित कराई नए कानून के संबंध में वार्तालाप कार्यशाला


भोपाल। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 यह तीन नए कानून आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, जवाबदेह, भरोसेमंद और न्याय प्रेरित बनाने के प्रयास हैं। ये कानून 1 जुलाई 2024 से प्रभावी होंगे। यह बात पुलिस उपायुक्त, भोपाल जोन-1 प्रियंका शुक्ला, ने पीआईबी, भोपाल द्वारा इन नए कानूनों पर आयोजित कार्यशाला ‘वार्तालाप’ को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई तरीकों से व्यवस्था की गई है। 30 से अधिक ऐसे प्रावधान हैं, जो पीड़ितों के अधिकारों को प्रभावी ढंग से प्राथमिकता देते हुए उनकी रक्षा करते हैं। शुक्ला ने आगे कहा कि पहले चार्जशीट की प्रति सिर्फ आरोपी को दी जाती थी, अब पीड़ित को भी चार्जशीट की कॉपी मिलेगी। उन्होंने कहा कि जांच में वैज्ञानिक तरीकों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। 7 वर्ष या इससे अधिक की सजा के प्रवाधान वाले सभी अपराधों में फॉरेंसिक अनिवार्य होगा। यह नए कानून लोगो को तय समय में न्याय दिलाने की दिशा में मील के पत्थर साबित होंगे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अतिरिक्त जिला अभियोजन अधिकारी प्रियंका उपाध्याय ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का मकसद सजा देने की बजाय न्याय देना है। इन कानूनों के लागू होने के बाद आम जनता को न्याय, सरल, सुलभ और समबद्ध रूप से प्राप्त होंगे। एफआईआर से लेकर अदालत के निर्णय तक की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इन कानूनों का प्रयास तय समय पर न्याय दिलाना है। उन्होने आगे कहा कि भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध पर एक नया अध्याय सामाहित किया गया है। साथ ही इन कानूनों में टेक्नोलॉजी के उपयोग पर ज्यादा बल दिया गया है। इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल साक्ष्य अब साक्ष्य के अन्य रूपों के समान गिने जाएंगे। इन कानूनों में पीड़ितो को सशक्त बनाने के लिए बहुत सारे प्रावधान किए गए हैं। वहीं पुलिस को जांच में प्रगति के बारे में 90 दिनों के भीतर सूचित करना जरूरी होगा। कार्यशाला वार्तालाप में पीआईबी, भोपाल के अपर महानिदेशक प्रशांत पाठराबे ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के 25 दिसंबर 2023 को कानून बनने के साथ ही भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नये युग की शुरुआत हुई है। उन्होंने इन कानूनों के अन्य प्रावधानों के बारे में भी चर्चा की। कार्यशाला को संबोधित करते हुए पीआईबी, भोपाल के उप निदेशक डॉ. सत्येन्द्र शरण ने कहा कि नए कानूनों के लागू होने के साथ कोई व्यक्ति ई-एफआईआर या किसी भी पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करा सकता है, भले ही थाने का कार्य क्षेत्र कुछ भी हो। साथ ही, एफआईआर की प्रति इलेक्ट्रोनिक तरीके से प्राप्त की जा सकती है।


क्या होगा नए कानूनों में


तीनों कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए आइपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य कानून की जगह लेंगे। नए कानूनो में ई-रिकॉर्ड का प्रावधान किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत जीरो एफआईआर, ई-एफआईआर और चार्जशीट डिजिटल होंगे। पीड़ित को 90 दिनों के भीतर सूचना प्रदान की जाएगी और 7 साल या उससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले मामलों में फॉरेंसिक जांच अनिवार्य होगी। राजद्रोह कानून को निरस्त कर देशद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसमें भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ कार्यों के लिए सात साल तक की सजा अथवा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। साथ ही भगोड़े अपराधी की अनुपस्थिति में भी कोर्ट द्वारा दी गई समय सीमा के बाद उसके खिलाफ मामले की सुनवाई शुरु की जा सकेगी। और दोषी पाए जाने पर 10 साल या अधिक की सजा / आजीवन कारावास / मौत की सजा और भगोड़े अपराधियों की संपत्ति जब्त करने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर आवश्यक कदम उठाए जाने का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही संगठित अपराधों पर नए प्रावधान बनाए गए हैं । आतंकवाद को परिभाषित करते हुए इसके प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति को मजबूत किया गया है, और आतंकवादी कृत्यों के लिए मृत्युदंड अथवा आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। साथ ही यौन उत्पीड़न के मामलों में सात दिन के भीतर जांच रिपोर्ट देनी होगी।नो नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं। अब मॉब लीचिंग भी पहली बार अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। मॉब लिंचिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों के लिए सजा को और अधिक सख्त बनाया गया है। इन कानूनों में महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी। 

नए कानून पर एक नजर


एक जुलाई से विभिन्न अपराधों के लिए एफआईआर नए कानून की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए जाएंगे।  आइपीसी में 511 धाराएं थीं, जबकि इसकी जगह लाई गई भारतीय न्याय संहिता में 358 धाराएं हैं। सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं, जबकि इसकी जगह लाई गई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। साक्ष्य अधिनियम में 166 धाराएं थी, जबकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं हैं। आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के मामले में सजा दिए जाने का प्रावधान है। हालांकि, नए कानून में हत्या की धारा 101 होगी। धोखाधड़ी के लिए धारा 420 के तहत मुकदमा चलता था। अब नए कानून में धाखाधड़ी के लिए धारा 316 लगाई जाएगी। आईपीसी की धारा 124-ए राजद्रोह के मामले में लगती थी, अब कानून की धारी 150 के तहत मुकदमा चलेगा। राजद्रोह की जगह देशद्रोह का इस्तेमाल किया गया है। अगर कोई देश की सुरक्षा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम करेगा तो उसके खिलाफ देशद्रोह के तहत कार्रवाई होगी, उसे जेल जाना पड़ेगा। भारत से बाहर छिपा आरोपित यदि 90 दिनों के भीतर अदालत में उपस्थित नहीं होता है तो उसकी अनुपस्थिति के बावजूद उस पर मुकदमा चलेगा। नाबालिगों से दुष्कर्म के लिए आजीवन कारावास या मृत्युदंड और सामूहिक दुराचार के मामले में 20 साल की कैद या आजीवन कारावास का प्रवधान किया गया है।  न्याय संहिता में संगठित अपराध, आतंकवादी कृत्य, मॉब लिंचिंग, हिट-एंड-रन, धोखे से किसी महिला का यौन शोषण, छीनना, भारत के बाहर उकसाना, भारत की संप्रभुता, अखंडता और एकता को खतरे में डालने वाले कृत्य और झूठी या फर्जी खबरों का प्रकाशन जैसे 20 नए अपराध भी शामिल हैं। नए कानूनों के तहत अब व्यभिचार, समलैंगिक यौन संबंध और आत्महत्या के प्रयास को अपराध नहीं माना जाएगा।