उत्तर प्रदेश की रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीट पर नामांकन की प्रक्रिया शुरू है और पर्चा भरने की अंतिम तारीख तीन मई है. बीजेपी की तरफ से स्मृति ईरानी ने अमेठी सीट से नामांकन भी दाखिल कर दिया है. कांग्रेस से दोनों सीट पर चेहरा कौन होगा, इसका फैसला पार्टी अभी तक नहीं ले सकी है. अमेठी और रायबरेली क्षेत्र गांधी परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है, जिस पर चुनाव लड़ने को लेकर कांग्रेस में सस्पेंस बना हुआ है. इस बीच दोनों सीटों पर गांधी परिवार का कौन सा सदस्य चुनाव लड़ेगा, इसका अंतिम फैसला कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को लेना है.


अमेठी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के सवाल पर राहुल गांधी मीडिया से कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे जो भी आदेश देंगे, उसका पालन किया जाएगा. इस तरह राहुल गांधी ने खरगे के पाले में गेंद डाल रखी है. वहीं, मल्लिकार्जुन खरगे ने अमेठी सीट पर टिकट पर एक इंटरव्यू में कहा,’जो होंगे, वहीं के होंगे.’ इसके साथ ही उन्होंने रायबरेली सीट से अपने चुनाव लड़ने की दावेदारी को भी पूरी तरह से खारिज करते हुए कहा कि मैं वहां से चुनाव लड़ने नहीं जा रहा हूं.

मल्लिकार्जुन खरगे के इस बयान के क्या मायने हैं, ‘जो होगा, वहीं का होगा.’ कांग्रेस अमेठी लोकसभा सीट पर इस बार के चुनाव में कोई नई सियासी बिसात बिछा रही है, क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को शिकस्त देकर अपना कब्जा जमाया था. ईरानी फिर से चुनावी मैदान में है, जिनके हाथों से सीट छीनने की कवायद में कांग्रेस है. कांग्रेस इसके लिए सियासी तानाबाना बुन रही है, जिसके चलते उम्मीदवार के नाम में देरी भी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है. खरगे का यह कहना कि मौजूदा वक्त में सस्पेंस बनाए रखना पड़ता है.

अमेठी सीट से स्थानीय नेता को मिल सकती है टिकट
रायबरेली-अमेठी की सियासत को बारीकी से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की बातों से साफ जाहिर है कि कांग्रेस इस बार बहुत की रणनीति के साथ चुनाव में उतर रही है. अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस से कौन चुनाव लड़ेगा, इस बात को पार्टी अध्यक्ष और गांधी परिवार के सिवा किसी को कोई भनक नहीं लग रही है. इसीलिए अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के संभावित प्रत्याशियों को लेकर अटकलबाजियों का जोर है, लेकिन कांग्रेस इस बार बीजेपी की तरह अंतिम समय में अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर चौंकाने का काम करेगी.

फिरोज नकवी कहते हैं कि अमेठी सीट से कांग्रेस किसी स्थानीय नेता को टिकट दे सकती है, लेकिन रायबरेली में गांधी परिवार से ही कोई चुनावी मैदान में उतरेगा. इसकी वजह यह है कि अमेठी से पहले रायबरेली से गांधी परिवार का ताल्लुक है, क्योंकि अमेठी सीट 1977 में बनी है, जबकि रायबरेली सीट पर आजादी के बाद पहली बार हुए चुनाव में इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी लड़े थे. उनके बाद इंदिरा गांधी, अरुण नेहरू और सोनिया गांधी ने किस्मत आजमाई. सोनिया गांधी राज्यसभा सांसद हैं और राहुल गांधी वायनाड से लड़े हैं, जहां से उनका जीतना तय है. ऐसे में राहुल अमेठी और प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ती हैं तो बीजेपी को कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोप लगाने का मौका मिल जाएगा. आरोपों से बचने के खातिर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी रायबरेली और अमेठी से चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच रहे हैं.


अमेठी से ज्यादा रायबरेली सीट अहम?
अमेठी लोकसभा सीट पर गांधी परिवार के संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक सांसद रहे. लंबे समय तक यहां पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. अब भी यहां की पहचान गांधी परिवार के रूप में ही होती है, लेकिन अमेठी से ज्यादा रायबरेली सीट गांधी परिवार के लिए ज्यादा अहम मानी जा रही है. मोदी लहर में अमेठी सीट कांग्रेस ने गंवा दी थी, लेकिन रायबरेली का दुर्ग बचा रहा. फिरोज नकवी कहते हैं कि अमेठी सीट पर इस बार कांग्रेस भी बीजेपी की राजनीतिक शैली में ही ऐन मौके पर दूसरी पार्टी के किसी स्थानीय दिग्गज नेता को कांग्रेस में एंट्री कर उसी दिन नामांकन कराकर बड़ी चोट देने की फिराक में है.

मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस तरह से कहा है कि वहीं का प्रत्याशी होगा के मायने निकाले जा रहे हैं, जिसके चलते स्थानीय किसी नेता को लेकर लड़ाए जाने के कयास लगाए जा रहे हैं. इसी कारण केंद्रीय चुनाव समिति से प्रत्याशी चयन का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष को दिलाने के पीछे रणनीति यही है कि अमेठी प्रत्याशी के नाम पर अंतिम समय तक गोपनीयता बनाए रखी जाए. माना जा रहा है कि कांग्रेस अमेठी सीट से किसी स्थानीय नेता को टिकट देगी, लेकिन रायबरेली से गांधी परिवार ही चुनाव मैदान में होगा.


प्रियंका गांधी का रायबरेली से लड़ना मजबूरी?
अमेठी लोकसभा सीट पर पिछली बार जिस तरह से राहुल गांधी को हार मिली है, कांग्रेस के लिए उसी तरह का झटका था, जब 1977 में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी को राज नारायण ने हराया था. इंदिरा गांधी 1980 में रायबरेली और मेढक सीट से चुनाव लड़ी थीं. वो दोनों सीट से जीत गई थीं, लेकिन रायबरेली सीट छोड़ दिया थी. इसके बाद गांधी परिवार से सोनिया गांधी 2004 में रायबरेली सीट पर चुनाव लड़ने आई थी. माना जा रहा है कि इंदिरा की तरह राहुल गांधी भी अमेठी सीट से अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, क्योंकि वो चुनावी मैदान में उतरकर स्मृति बनाम राहुल नहीं बनाना चाहते हैं. अमेठी से राहुल के लड़ने पर रायबरेली सीट से फिर प्रियंका गांधी को लड़ना मजबूरी बन जाएगा.फिरोज नकवी कहते हैं कि कांग्रेस की रणनीति को देखकर यह लगता है कि पार्टी राहुल गांधी को इस बार अमेठी सीट के बजाय रायबरेली सीट से चुनाव लड़ाने की फिराक में है ताकि उनपर प्रदेश छोड़कर भागने के आरोप न लग सकें. प्रियंका गांधी भी अन्य क्षेत्रों में प्रचार के लिए उपलब्ध रहें. प्रियंका गांधी के प्रत्याशी न होने पर कांग्रेस पर परिवारवाद के आरोपों को गाढ़ा करना मुश्किल होगा. इस रणनीति में इस बात का समाधान भी मौजूद है कि राहुल के जीतने की स्थिति में एक सीट से इस्तीफा देने के बाद वैकल्पिक उम्मीदवार के रूप में प्रियंका गांधी उपलब्ध रहेंगी और बीजेपी की वर्तमान रणनीति की काट भी कांग्रेस कर सकेगी.