भोपाल: मध्य प्रदेश में 9 साल बाद राज्य सरकार ने एक बार फिर पदोन्नति प्रक्रिया शुरू की है. अभी इसके लिए नियम बनाए जा रहे हैं. इससे मध्य प्रदेश शासन के 4 लाख से अधिक अधिकारी-कर्मचारी लाभान्वित होंगे. हालांकि सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मिले 8 साल से अधिक समय बीत चुका है. ऐसे में वो डबल प्रमोशन के हकदार हैं. इस पर भी सरकार ने विचार किया है. वहीं सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से प्रमोशन के साथ आरक्षित वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों पर डिमोशन का खतरा भी मंडरा रहा है. अब देखना ये है कि सरकार इस मामले का किस प्रकार पटाक्षेप करती है.


एक साथ नहीं मिलेगा डबल प्रमोशन
जिन कर्मचारियों और अधिकारियों को पदोन्नति मिले 8 साल से अधिक का समय बीत चुका है, या फिर जिन्होंने साल 2014-15 के बाद ज्वाइन किया और उनकी समयावधि 8 साल पूरी हो चुकी है. ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों को डबल प्रमोशन का लाभ सरकार देगी. हालांकि मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कहा है, कि कर्मचारियों को डबल प्रमोशन का लाभ तो मिलेगा, लेकिन एक साथ नहीं. बल्कि सरकार की मंशा है कि इस वर्ष एक प्रमोशन देने के बाद दूसरा प्रमोशन उनको अगले वर्ष दिया जाए. जिससे कर्मचारियों की कमी न हो.


इन कर्मचारियों पर लटकी डिमोशन की तलवार
सपाक्स संगठन के प्रदेश अध्यक्ष केएस तोमर ने बताया कि "साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सरकार ने एससी-एसटी वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का नियम बनाया था. इस नियम के तहत साल 2016 तक प्रदेश में आरक्षित वर्ग के कई अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रमोशन हुए. इससे आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को काफी फायदा हुआ, लेकिन ओबीसी समेत वो कर्मचारी-अधिकारी जो अनारक्षित वर्ग में थे, वो प्रमोशन में पीछे छूटते गए और उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.जिसमें कोर्ट ने तथ्यों पर विचार करने के बाद इस पदोन्नति प्रक्रिया को रद्द कर दिया. लेकिन इस बीच आरक्षित वर्ग के जिन अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति मिली है, ऐसे लोगों को डिमोशन का खतरा भी बना हुआ है."

हाई कोर्ट भी सुना चुका है फैसला
केएस तोमर ने बताया कि "पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 लागू होने के बाद से अब तक प्रदेश के 60 हजार से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रमोशन का लाभ मिल चुका है, लेकिन जब इसे हाईकोर्ट 2016 में रद्द कर चुका है, तो ऐसे में इसकी वैधता कितनी है. तोमर ने बताया कि अभी मध्य प्रदेश में प्रमोशन का कोई नियम नहीं है, इसलिए ठीक है, लेकिन जैसे ही सरकार नए नियम बनाएगी, जो कर्मचारी गलत तरीके से प्रमोशन का लाभ ले रहे हैं. उनको डिमोशन करना होगा.हाईकोर्ट ने भी 31 मार्च 2024 के आदेश में कहा है कि 2002 के नियम के आधार पर जिन एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिला है. उन सभी का डिमोशन किया जाएग. हालांकि सरकार ऐसा करने से बचना चाहती है, इसलिए नए नियमों को ऐसा बना रही है. जिससे सबको समान रुप से पदोन्नति का लाभ मिल सके.

यूपी-उत्तराखंड में डिमोट, पंजाब-हरियाणा में क्रीमीलेयर बाहर
उच्च न्यायालय ने पदोन्नति को लेकर अपने आदेश में कहा है कि जब तक स्टेटस की यथा स्थिति है, तब तक ना डिमोट होंगे और ना ही प्रमोट किया जाएगा, लेकिन जिस दिन स्टेटस बैकेंड हो जाएगा, यथा स्थिति खत्म हो जाएगी. उसी दिन डिमोट करना पड़ेगा. यूपी और उत्तराखंड में भी बाद में गलत पदोन्नति नियम के कारण आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को डिमोट किया गया.केएस तोमर ने बताया कि सपाक्स ने अपनी याचिका में कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण के नियम में क्रीमीलेयर को शामिल नहीं करना चाहिए. ऐसे ही मामले में पंजाब और हरियाणा में पदोन्नति के दौरान क्रीमीलेयर को आरक्षण का लाभ देने से वंचित किया गया है.

पदोन्नति में आरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट गई सरकार
अजाक्स के प्रदेश प्रवक्ता ने विजय शंकर श्रवण ने मुख्यमंत्री द्वारा शुरू की जा रही प्रमोशन प्रकिया को लेकर साधुवाद जताया है. साथ ही कहा है कि राज्य सरकार वंचित समूह के अधिकारियों और कर्मचारियों के पक्ष में है. इसीलिए हाईकोर्ट में पदोन्नत में आरक्षण नियम रद्द होने के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है. शंकर श्रवण ने बताया कि गोरकेला कमेटी ने पदोन्नति को लेकर साल 2017 में प्रस्ताव तैयार किया था.वह अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और सामान्य वर्ग सभी के हितों को समाहित करके तैयार किया गया था. गोरकेला कमेटी द्वारा बनाया गया नियम, स्थाई राहत देने वाला दस्तावेज है. इसे वैधानिक चेतावनी नहीं दी जा सकती है.