Supreme Court: भारत के सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट में एक हैरान करने वाला सामने आया है। जिसमें एक याचिकाकर्ता ने एक नकली प्रतिवादी के सहारे कोर्ट से अपने पक्ष में आदेश हासिल कर लिया। इतना ही नहीं, इस मामले में वकालतनामा के नाम पर भी बड़ा खेल किया गया। जिस वकील के वकालतनामे पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। उस वकील की उम्र 80 साल है और उन्होंने करीब छह साल पहले वकालत से सन्यास ले लिया है। इसकी जानकारी पर जब असली प्रतिवादी सामने आया तो अदालत को सच्चाई का पता चली। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक पीठ ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए।

पहले जानिए क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट में नकली प्रतिवादी खड़ा कर अपने पक्ष में फैसला कराने वाला युवक बिहार का रहने वाला है। यह मामला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले से जुड़ा एक भूमि के विवाद का है। इस मामले में याचिकाकर्ता मुजफ्फरपुर ट्रायल कोर्ट और पटना हाईकोर्ट में मुकदमा हार चुका था। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। इसके बाद प्रतिवादी के साथ एक नकली समझौते का हवाला देकर फैसला अपने पक्ष में करवा लिया। यह समझौता पत्र उस तथाकथित प्रतिवादी के जरिए पेश किया गया। जो वास्तव में नकली था और उसी नकली प्रतिवादी की ओर से कोर्ट में चार वकीलों ने उपस्थित होकर न्यायिक पीठ को बताया कि दोनों पक्षों में मामला सुलझ गया है।

असली प्रतिवादी ने खोली पोल

रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में फैसला होने के करीब पांच महीने बाद असली प्रतिवादी सामने आया। वह बिहार के मुजफ्फरपुर जिले का रहने वाला है। असली प्रतिवादी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में तब पता चला। जब उसके दामाद ने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर फैसले का आदेश देखा। इसके बाद असली प्रतिवादी तुरंत सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अदालत को बताया कि उसे सुप्रीम कोर्ट में चल रहे इस केस की जानकारी ही नहीं थी और उसने याचिकाकर्ता के साथ कभी कोई समझौता ही नहीं किया है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने उसने अपना कोई वकील भी नियुक्त किया था।

नकली पक्षकार और वकीलों की भूमिका संदिग्ध

यह भी सामने आया कि जिस वकील ने कथित नकली प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व किया, वह अब वकालत नहीं कर रहे हैं और उन्हें मामले की कोई जानकारी नहीं थी। इस वकील जे एम खन्ना की उम्र 80 साल है और उन्होंने खुद को मामले से अनभिज्ञ बताया। उनकी बेटी शेफाली खन्ना ‌‌का नाम भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश में दर्ज था। इसपर शेफाली खन्ना ने भी स्पष्ट किया कि वह उस दिन कोर्ट में पेश नहीं हुई थीं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन चार वकीलों के नाम भी दर्ज हैं। जिन्होंने कथित तौर पर नकली प्रतिवादी की पेशी कराई थी। फैसले के बाद से असली प्रतिवादी का ‘भूत’ बनकर आया नकली प्रतिवादी भी गायब है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपनाई सख्ती, जांच के आदेश जारी

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के सामने आने पर न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और जयमाल्या बागची की पीठ ने इस पूरे मामले को गंभीर धोखाधड़ी मानते हुए बीते साल दिसंबर में दिया गया आदेश रद कर दिया है। साथ ही कोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया कि दिसंबर में फैसला सुनाने वाले दिन कौन-कौन कोर्ट में उपस्थित था। इसकी बारीकी से जांच की जाए। साथ ही यह जांच रिपोर्ट तीन हफ्तों में पीठ के सामने दाखिल की जाए। इस दौरान अदालत ने ये चेतावनी भी दी कि यदि जरूरत पड़ी तो इस मामले में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर का आदेश भी दिया जाएगा।

क्या बोले वकील?

असली प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ताओं ज्ञानेंद्र सिंह और अभिषेक राय ने कोर्ट को बताया कि यह आदेश धोखाधड़ी, छल और सच्चाई को छिपाकर प्राप्त किया गया है। इसलिए इसे रद किया जाए। साथ ही उन्होंने मांग की कि इस प्रकार के दुर्भावनापूर्ण कृत्यों को रोका जाए। वरना भविष्य में और भी लोग कानून को गुमराह करने का साहस करेंगे। इसके बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना रुख भी स्पष्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि कोर्ट को गुमराह नहीं किया जा सकता और यदि किसी ने ऐसा करने की कोशिश की तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।