कैग ने बजट के खराब प्रबंधन पर उठाए सवाल


भोपाल । एक तरफ सरकार विकास कार्यों के लिए लगातार बजट ले रही है, दूसरी तरफ स्थिति यह है कि विभाग अपने बजट का समय पर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। विभागों द्वारा बजट के खराब प्रबंधन पर कैग ने सवाल उठाए हैं। कैग के अनुसार प्रदेश सरकार का खजाना भरने से लेकर खर्च करने तक तंत्र गड़बड़ाया है। किस विभाग में वास्तविक खर्च कितना होगा और आय कहां से होगी, इसका सटीक अनुमान अधिकारी नहीं लगा पा रहे हैं। इस कारण प्रदेश सरकार भले ही प्रतिवर्ष बजट बढ़ा रही है, पर उसका खर्च ही नहीं हो पा रहा है। बजट भले ही पूरे वर्ष के लिए आवंटित किया जाता है, पर कई विभाग साल भर सुस्त रहते हैं, जब पैसा लैप्स होने की स्थिति आती है तो मार्च में अधिकतर बजट का आनन-फानन में उपयोग करते हैं।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में टप्पणी की है कि राज्य का बजट तैयार करने वाले अधिकारियों की क्षमता पर सवाल उठे हैं। बजट नियंत्रण अधिकारी ने वास्तविक जरूरत का आंकलन किए बिना अनुमान तैयार कर लिया। इसके लिए संबंधित आहरण एवं संवितरण अधिकारी से प्रस्ताव भी नहीं लिया। नतीजा, राज्य सरकार को बीते वित्तीय वर्ष के आखिरी दिन 31 मार्च को 16746 करोड़ रुपए से अधिक की राशि सरेंडर करना पड़ी।


8 विभाग राशि उपयोग में पिछड़े
कैग की रिपोर्ट के अनुसारआठ विभागों की एक-एक हजार करोड़ से अधिक की राशि का उपयोग नहीं किया जा सका। स्कूल शिक्षा, महिला एवं बाल विकास, किसान कल्याण तथा कृषि विकास, ग्रामीण विकास जैसे बड़े विभाग इसमें शामिल हैं। कैग ने यह भी कहा है कि अनुमानों की पूरी सटीकता हमेशा संभव नहीं है, लेकिन जहां चूक पूर्व विवेक की कमी, स्पष्ट या अवास्तविक अनुमान की उपेक्षा का नतीजा है, यह चिंता का विषय है। साथ ही सुझाव दिया है कि सभी आंकलन अधिकारियों को बजट में हर उस चीज के लिए प्रावधान करने की कोशिश करना चाहिए जिसकी कल्पना की जा सकती है और केवल उतना ही देना चाहिए जितना जरूरी हो। प्रशासन और वित्त विभाग को अनुमानों पर अंतिम जांच करते समय इस पर विचार करना चाहिए।


 सीएजी ने चेताया
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने मप्र सरकार के बजटीय प्रबंधन को खराब मानते हुए उस पर कई गंभीर प्रश्न उठाए हैं। सीएजी ने सरकार को राजस्व व्यय को पूरा करने के लिए कर्ज से बचने के लिए आगाह किया है। सीएजी ने इस बात पर गंभीर आपत्ति की है कि अवास्तविक प्रस्ताव, व्यय निगरानी तंत्र के ठीक से काम नहीं करने और योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से नहीं होने के कारण बजट का संतुलन बिगड़ता है।  विधानसभा में प्रस्तुत की गई सीएजी की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक बजट बनाने से लेकर व्यय की निगरानी और उपयोग को लेकर प्रश्न उठाए गए हैं। सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में तीन लाख 21 हजार करोड़ रुपये के बजट में से 50 हजार 543 करोड़ (15.71 प्रतिशत ) रुपये बच गए थे। इसमें 22 हजार 984 करोड़ रुपये विभागों द्वारा वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन शासन को लौटाए गए, पर बाकी राशि समर्पित नहीं करने से लैप्स हो गई। इसमें पूंजीगत व्यय के लिए प्राविधानित राशि अधिक थी। सीएजी की रिपोर्ट से यह संकेत मिलते हैं सरकार हर वर्ष बजट में भले ही राशि बढ़ाती जा रही है, पर वास्तविक व्यय से तुलना करें तो तस्वीर अलग दिखती है। सीएजी ने दूसरा बड़ा प्रश्न अनुपूरक प्रावधान को लेकर उठाया है। वित्तीय वर्ष 2018-19 से वित्तीय वर्ष 2022-23 के बीच वास्तविक व्यय मूल बजट प्रावधानों के स्तर तक भी नहीं पहुंचा। उदाहरण के तौर पर वित्तीय वर्ष 2022-23 में मूल बजट दो लाख 79 करोड़ रुपये का था। अनुपूरक बजट 42 हजार 421 करोड़ रुपये का था, जबकि वास्तविक व्यय दो लाख 71 हजार करोड़ रुपये ही रहा।


 दूसरे विभागों को नहीं मिल पाता पैसा
रिपोर्ट में कहा गया है कि अवास्तविक प्रस्तावों पर आधारित बजटीय आवंटन, संसाधन जुटाने की क्षमता का अत्याधिक विस्तार, खराब व्यय निगरानी तंत्र, कमजोर योजना क्रियान्वयन क्षमता व आंतरिक नियंत्रण वित्तीय वर्ष के आखिर में पैसा जारी करने को बढ़ावा देते हैं। कुछ मदों में अत्याधिक बचत होने से दूसरे विभागों को वह राशि नहीं मिल पाती है, जिसका वो उपयोग कर सकते थे। मप्र बजट नियमावली के अनुसार संवितरण अधिकारी को प्रत्याशित बचतों की गणना 15 दिसंबर के पहले करना चाहिए। बजट नियंत्रण अधिकारियों को 15 जनवरी के पहले यह जानकारी वित्त विभाग को प्रस्तुत करना जरूरी है। यह इसलिए जरूरी है ताकि वित्त विभाग अनुदान की अन्य मांगों के लिए संसाधनों का आवंटन कर सके।


कई विभागों में वित्तीय असंतुलन
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की 2022-23 की रिपोर्ट में सामने आया है कि महिला एवं बाल विकास (डब्ल्यूसीडी), ऊर्जा विभाग, पशुपालन आदि विभागों ने 34 अनुदानों में 50 प्रतिशत से अधिक राशि मार्च में खर्च की है, जिससे वित्तीय असंतुलन हुआ। योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी सहित इसके कई कारण थे। राज्य शासन ने वर्ष 2022-23 में कुल व्यय दो लाख 68 हजार 699 करोड़ रुपये में से 54 हजार 335 करोड़ रुपये यानी 20.22 प्रतिशत मार्च में खर्च किया। इसमें भी 17 अनुदानों में 12 हजार 42 करोड़ रुपये की राशि का सौ प्रतिशत मार्च में ही खर्च किया गया, जबकि मध्य प्रदेश बजट की नियमावली में अंतिम कुछ माह में अत्यधिक व्यय को वित्तीय नियमितता का उल्लंघन माना गया है। व्यवस्था है कि पहली दो तिमाही में 45 प्रतिशत, तीसरी में 25 और आखिरी में 30 प्रतिशत खर्च का लक्ष्य होना चाहिए। कभी कम और कभी बहुत अधिक खर्च से मासिक प्राप्ति एवं व्यय का संतुलन गड़बड़ाया। वित्तीय वर्ष 2022-23 में तो दिसंबर से लगातार खर्च बढ़ा और मार्च में सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया। मार्च में खर्च 54 हजार 335 करोड़ रुपये हुआ, जबकि मासिक प्राप्ति 74 हजार 216 करोड़ रुपये रही। पहली तिमाही का खर्च 49 हजार 518 करोड़ रुपये से अधिक मार्च में खर्च किया गया।