चीन कर रहा भारत को घेरने की कोशिश, म्यांमार के बंदरगाह पर किया निर्माण
रंगून । म्यांमार की सैन्य जुंटा सरकार ने चीन को क्याउकफ्यू बंदरगाह को विकसित करने की पूरी छूट दे रखी है। इससे भारत की परमाणु पनडुब्बियों को सबसे ज्यादा खतरा होने वाला है। बता दें कि एक ओर जहां बंदरगाह पर निर्माण करके चीन भारत को घेरने की कोशिशें कर रहा है वहीं म्यांमार के क्याउकफ्यू बंदरगाह पर जुंटा सरकार ने निर्माण को खुली छूट दे रखी है। यह बंदरगाह म्यांमार के पश्चिमी किनारे पर स्थित है, जो भारत के बेहद करीब है। चीन इस बंदरगाह को इस ढंग के विकसित कर रहा है, जिससे जरूरत पड़ने पर उसका इस्तेमाल सैन्य हितों को पूरा करने के लिए किया जा सके। चीन दुनिया के हर मंच पर म्यांमार की सैन्य तानाशाह सरकार का बचाव कर रहा है। म्यांमार में स्थित क्याउकफ्यू बंदरगाह उन कई बंदरगाहों में शामिल हैं, जिनका संचालन चीन के हाथों में हैं। इनमें कंबोडिया में रीम नौसैनिक अड्डा, श्रीलंका में हंबनटोटा और पाकिस्तान में ग्वादर के अलावा जिबूती में एक नौसैनिक स्टेशन भी शामिल है।
गौरतलब है कि चीन और म्यांमार के बीच दिसंबर 2023 के अंतिम हफ्ते में क्याउकफ्यू बंदरगाह परियोजना को गति देने के लिए कथित तौर पर एक समझौते पर सहमति बनी थी। म्यांमार के सत्तारूढ़ जुंटा और चीन के राज्य के स्वामित्व वाले सीआईटीआईसी समूह (म्यांमार) के अधिकारियों ने निर्माण कार्य को तेज करने के लिए म्यांमार की राजधानी नेपीताव में मुलाकात की। क्याउकफ्यू पोर्ट की स्थिति को लेकर भारत चिंतित है। इसका निर्माण भारत के पूर्वी तट के बहुत करीब किया जा रहा है और यह भारत के प्रमुख नौसैनिक अड्डों में से एक आईएनएस वर्षा के करीब है। आईएनएस वर्षा को भारत की परमाणु पनडुब्बियों के होम बेस के तौर पर विकसित किया जा रहा है।
जानकार बता रहे हैं कि भविष्य में इस नौसैनिक अड्डे पर न्यूक्लियर अटैक सबमरीन (एसएसएन) और बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन (एसएसबीएन) को तैनात किया जाएगा। भारत के पास वर्तमान में दो परमाणु पनडुब्बियां हैं, जो एसएसएन कैटेगरी से आती हैं। इनका निर्माण स्वदेशी तौर पर किया गया है। ये परमाणु पनडुब्बियां भारत की 18 डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों से कई मामलों में बेहतर हैं। एसएसएन पनडुब्बियां डीजल इलेक्ट्रिक की तुलना में लंबे समय तक पानी के नीचे रह सकती हैं। अगर चीन भारत की परमाणु पनडुब्बियों की आवाजाही पर निगरानी रखने में सफल हो जाता है, तो युद्ध की स्थिति में भारत के परमाणु ट्रायड के समुद्री हिस्से को बेअसर करने के लिए बेहतर स्थिति में होगा।