अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्लास्टिक स्ट्रॉ की वापसी का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि पेपर स्ट्रॉ 'काम नहीं करते' और उनका इस्तेमाल 'बेवकूफी भरा' है। ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर साइन करते हुए कहा, 'हम वापस प्लास्टिक स्ट्रॉ पर जा रहे हैं।' ट्रंप का यह कदम पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन की उस नीति को उलटने के लिए है, जिसमें साल 2027 तक सरकारी संस्थानों में सिंगल-यूज प्लास्टिक (जैसे स्ट्रॉ) पर रोक लगाने का फैसला किया गया था। बाइडन प्रशासन का लक्ष्य 2035 तक सभी सरकारी कार्यालयों में प्लास्टिक का उपयोग खत्म करना था। इसे लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखा, अब अपने ड्रिंक का मजा बिना किसी गीले और बेकार पेपर स्ट्रॉ के लें! उन्होंने बाइडेन की नीति को 'खत्म' घोषित किया।  

वहीं पर्यावरणविदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति के फैसले की कड़ी आलोचना की है। कई अमेरिकी राज्यों और शहरों ने पहले ही प्लास्टिक स्ट्रॉ पर प्रतिबंध लगा दिया है, क्योंकि वे समुद्रों और जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं और जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। ओशियाना नाम की पर्यावरण संस्था की प्लास्टिक अभियान प्रमुख 'क्रिस्टी लेविट' ने कहा, 'ट्रंप गलत दिशा में जा रहे हैं। प्लास्टिक प्रदूषण संकट बन चुका है, और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।' विशेषज्ञों के मुताबिक, हर मिनट समुद्र में एक ट्रक जितनी प्लास्टिक कचरा डाला जाता है। प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों (माइक्रोप्लास्टिक) में बदलकर मछलियों, पक्षियों और यहां तक कि इंसानों के शरीर में भी पहुंच रहा है।

वहीं, प्लास्टिक उद्योग ने ट्रंप के इस कदम की तारीफ की। प्लास्टिक इंडस्ट्री एसोसिएशन के अध्यक्ष मैट सीहोल्म ने कहा, स्ट्रॉ तो बस शुरुआत है, हमें 'बैक टू प्लास्टिक' मूवमेंट का समर्थन करना चाहिए।

समुद्री जीवों के लिए बड़ा खतरा
पर्यावरण संगठनों का कहना है कि हर दिन अमेरिका में 39 करोड़ से ज्यादा प्लास्टिक स्ट्रॉ इस्तेमाल किए जाते हैं, जो 200 साल तक नष्ट नहीं होते। ये समुद्री कछुओं और अन्य जीवों के लिए बड़ा खतरा बनते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर साल दुनिया में 40 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक बनता है, जिसमें से 40% केवल पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है।

दुनिया भर में प्लास्टिक पर नियंत्रण की कोशिश
दुनिया के 100 से ज्यादा देश प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। पिछले साल दक्षिण कोरिया में इस मुद्दे पर चर्चा हुई, लेकिन कोई ठोस फैसला नहीं लिया जा सका। इस साल फिर इस समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिश होगी।